एक सौ बारह साल पहले बहरों को सुनाने के लिए दिल्ली में आज ही के दिन फेंका गया था पहला बम
शाहपुरा (कमलेश अग्रवाल) के शहीदों की शहादत को नमन- लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम केसः 23 दिसंबर 1912 की याद में ही होता है शाहपुरा का शहीद मेला
जोरावर सिंह ने वायसराय पर फेंका था बम, ऐसे अंडरग्राउंड हुए कि खोज नहीं पाए अंग्रेज
शाहपुरा,
शाहपुरा का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। आज ही के दिन 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के चांदनी चैक में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर फेंके गए बम कांड ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में एक नई क्रांतिकारी चेतना का भी संचार किया। इस ऐतिहासिक घटना का नेतृत्व शाहपुरा के वीर क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ के भाई जोरावर सिंह बारहठ और उनके पुत्र प्रताप सिंह बारहठ ने किया। इस घटना को स्मरण करते हुए शाहपुरा में हर साल 23 दिसंबर को शहीद मेला आयोजित किया जाता है। आज भी यह आयोजन है।
हार्डिंग बम कांड- ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती--
23 दिसंबर 1912 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड हार्डिंग राजधानी दिल्ली में भव्य जुलूस के साथ प्रवेश कर रहा था। जब वह चांदनी चैक के कटरा धूलिया के पास हाथी पर सवार होकर गुजर रहा था, तभी जोरावर सिंह बारहठ ने छत से बम फेंका। इस धमाके में वायसराय हार्डिंग गंभीर रूप से घायल हुआ और उसका सेवक मारा गया। इस हमले ने ब्रिटिश हुकूमत की शक्ति और अहंकार को झकझोर कर रख दिया।
कटरा धूलिया का खूनी इतिहास---
चांदनी चैक का कटरा धूलिया आज भी खूनी कटरा के नाम से प्रसिद्ध है। 23 दिसंबर 1912 की घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली में मार्शल लॉ लागू कर दिया। तीन दिनों तक कर्फ्यू रहा और देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए। इस घटना ने चांदनी चैक को क्रांतिकारियों के साहसिक इतिहास का प्रतीक बना दिया।
जोरावर सिंह बारहठ, राजस्थान के चंद्रशेखर आजाद---
ठा. केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ ने हार्डिंग बम कांड का साहसिक नेतृत्व किया। बम फेंकने के बाद वे 27 वर्षों तक भूमिगत रहे और अंग्रेजों के हाथ कभी नहीं लगे। उनकी गुप्त रणनीतियों और बलिदान ने उन्हें राजस्थान का चंद्रशेखर आजाद का खिताब दिलाया।
प्रताप सिंह बारहठ-युवावस्था में बलिदान--
प्रताप सिंह बारहठ, जो जोरावर सिंह के भतीजे थे, ने भी इस बम कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। युवा अवस्था में ही उन्होंने अपने चाचा के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और देशभक्ति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
ठा. केसरी सिंह बारहठ-स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणा स्रोत--
केसरी सिंह बारहठ ने स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने हजारीबाग जेल में बंद रहते हुए अन्य कैदियों को प्रेरित किया और भारत का नक्शा बनाना सिखाया। उनकी दूरदृष्टि और बलिदान ने शाहपुरा को राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बना दिया।
राष्ट्रीय संग्रहालय और त्रिमूर्ति स्मारक--
शाहपुरा में बारहठ परिवार की हवेली को राष्ट्रीय संग्रहालय का दर्जा प्राप्त है, जो स्वतंत्रता संग्राम की अमूल्य धरोहरों को संरक्षित करता है। कुंड गेट के पास स्थित त्रिमूर्ति स्मारक आज भी बारहठ परिवार के बलिदान की गाथा सुनाता है। यह स्मारक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है।
हमारे सभी ग्रुप members की तरफ से शहीदों की शहादत को सादर नमन
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